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JOIN-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान-BAAS

13 February 2010

बोलोगे नहीं तो कोई सुनेगा कैसे?



"बोलोगे नहीं तो कोई सुनेगा कैसे?"

हम सभी जानते हैं कि "हमारे साथ होने वाले अन्याय का बडा कारण है, हमारी चुप रहने की आदत।"

इसलिए दोस्तों शिक्षा से भी ज्यादा जरूरी है-"अपनी बात को बोलना आना। बोलने की हिम्मत होना।"

मैंने अपने जीवन में अनुभव किया है कि-

"जो लोग अपने दिल की बात बोल नहीं सकते हैं, उन्हें अनेक प्रकार के तनाव और अनेक तरह की शारीरिक बीमारियों की पीडाओं को झेलते रहना पडता है।"

संसार में हजारों लोगों ने पीड़ित और भयभीत लोगों को अपनी सही बात, सही तरीके से बोलना सिखाने के लिए अनेक उल्लेखनीय कार्य किये हैं, लेकिन हम देख रहे हैं कि साधारण लोगों में अन्दर तक इतना अधिक भय व्याप्त है, जिसके चलते उनकी हिम्मत जवाब दे चुकी है। ऐसे भयभीत लोगों को भयमुक्त करने हेतु, किसी भी सरकार द्वारा, देश के किसी भी स्कूल में शिक्षा नहीं दी जाती है। इसके साथ-साथ आम लोगों के प्रति सरकार, प्रशासन और पुलिस की ओर से भी नकारात्मक, असंवेदनशील और उदासीन रवैया अपनाया जाना और भी घातक है।

इस प्रकार के हालतों से जूझ रहे लोगों को अपनी बात बोलने के लिए एक मंच की जरूरक अनुभव की गयी|

अत: हमने में शहीद-ए-आजम और सर्व कालिक भारत रत्न भगत सिंह की जयंती के दिन 27 सितम्बर, 1993 को "भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान" नामक संगठन कि स्थापना की, जिसका संक्षिप्त नाम BAAS है। इसका भारत सरकार की विधि अधीन 06 अप्रैल, 1994 को सम्पूर्ण भारत में कार्य करने के लिए पंजीकरण करवाया गया।

वर्ष 2005 तक हम बिना किसी स्थायी व्यवस्था के काम करते रहे। लोगों को वार्षिक सदस्य बनाते रहते थे, जिसमें हर साल बहुत सा समय सदस्यों के नवीनीकरण में ही बर्बाद हो जाता था। लेकिन इस दौरान हमने बहुत कुछ सीखा, अनुभव किया और अन्ततः कुछ कानूनी औपचारिकताएँ पूरी करने के बाद 21 नवम्बर, 2005 से इस संस्थान में हमने इच्छुक एवं योग्य लोगों को आजीवन प्राथमिक सदस्यता देना शुरू कर दिया। अब कोई भी 18 वर्ष कि आयु पूर्ण कर चुका स्वच्छ छवि का शिक्षित, स्वावलंबी और आत्मनिर्भर व्यक्ति इस संस्थान की सदस्यता हेतु आवेदन कर सकता है।

संस्थान के विकास एवं विस्तार में अनेक सक्रिय साथियों का अच्छा सहयोग रहा है, जिसके परिणाम स्वरूप आजीवन सदस्यों कि संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है| खुशी की बात है कि लोगों में बास की सदस्यता ग्रहण करने के बाद लगातार आत्मविश्वास बढ रहा है।

सदस्यों एवं आम लोगों को सभाओं, बैठकों, प्रशिक्षणों, व्यक्तिगत चर्चाओं, समाचार-पत्रों आदि के माध्यम से जागरूक किया जा रहा है, जिसमें मेरे अपने "मानव व्यहार" से सम्बन्धित ज्ञान और अनुभव का सदस्यों को लाभ एवं मार्गदर्शन मिल रहा है।

इस सबके परिणामस्वरूप आम लोगों ने मेरी बात सुनी और यह कारवां चल निकला है।

इस संगठन को हमने एक एक जनांदोलन के रूप में चलाने का निर्णय लिया है। इसलिये मैंने अपने साथियों का आह्वावान करने के लिए कुछ पंक्तियों का चयन किया है या ये कहना अधिक ठीक होगा कि अनुभव के साथ-साथ अपने आप इनका चयन होता गया।जैसे-

"हमारा मकसद साफ! सभी के साथ इंसाफ !!''

मैंने ये कहकर लोंगों को अपने साथ बुलाया-

"एक साथ आना शुरुआत है,
एक साथ रहना प्रगति है और
एक साथ काम करना सफलता है।''

इन शब्दों ने जादू का सा काम किया और लोग हमारे साथ चल दिए।
दिन-प्रतिदिन यह कारवां बढता ही चला जा रहा है।

मैंने मेरे हजारों साथियों से आगे कहा कि -

"शोषण की चक्की में पिसते वही, जिनकी आवाज में ताकत नहीं।''

देखते ही देखते लोगों का लगातार जुड़ना जारी रहा|

अब मुझे अंत में केवल सूत्र वाक्य-

"बोलोगे नहीं तो कोई सुनेगा कैसे?''
को ही याद दिलाना पडता है और कारवां चलता रहता है। चलता जा रहा है।

अब मैं देश के हर उस व्यक्ति का आह्वान करता हूँ-

-जिनमें अपनी खुद्दारी को जिंदा रखने की चाहत है!

-जो साल के तीन सौ पैंसठ दिनों में से कम से कम बारह दिन इस संस्थान के लिए निकाल सकें!

-जो अपनी मेहनत से कामये गए सौ रुपये में से कम से कम दस पैसे इस संस्थान के संचालन हेतु अनुदान कर सकें!

-जो कम से कम 7 लोगों को इस संस्थान में सदस्य के रूप जुडवा सकें! और

-जरूरत के वक्त इस जनान्दोलन का हिस्सा बन कर संघर्ष करने को तैयार रहें।

आपका साथी

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
फोन : 0141-2222225 (समय : सायं : 7 से 8 बजे तक)
Mob : 098285-02666

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