नोट : आगे से इस संस्थान के बारे में किसी भी प्रकार की जानकारी हेतु निम्न साइट पर क्लिक करें।

JOIN-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान-BAAS

06 March 2014

कर्त्तव्य एवं अधिकार!



1. आजीवन प्राथमिक सदस्यता कार्ड मिलते ही सबसे पहले सदस्यता कार्ड के पीछे छपे समस्त विवरण को ध्यानपूर्वक पढ़कर ठीक से समझ लें और इसका निष्ठापूर्वक पालन करें।

2. सदस्यता कार्ड मिलते ही, पोस्ट कार्ड/मेल या फोन (फोन पर सायं 07 बजे से सायं 08 बजे के बीच) द्वारा इसकी सूचना जयपुर स्थित राष्ट्रीय अध्यक्ष के कार्यालय को तत्काल भेजें/दें।

3. अपने सदस्यता कार्ड की फोटो कॉपी करवाकर सुरक्षित रख लें, जिससे कि भविष्य में कभी भी सदस्यता कार्ड के गुम या चोरी या नष्ट होने पर पुलिस को रिपोर्ट करने एवं डुप्लीकेट कार्ड बनवाने में आपको किसी प्रकार की असुविधा नहीं हो।

4. सदस्यता कार्ड के साथ में भेजे जा रहे संशोधित नये 0 नं. फार्म को नये लोगों से भरवाने से पूर्व जरूरत के अनुसार इसकी फोटो कॉपी करवाकर अपने पास रख लें, जिससे नये इच्छुक और पात्र लोगों को बास का सदस्य बनावाने के लिए तत्काल काम आ सके।

5. अपने सभी परिवार-जनों, मिलने वालों, मित्रों, सम्बन्धियों को बता दें कि आपने इस संस्थान की आजीवन प्राथमिक सदस्यता ग्रहण कर ली है और आप बास के उद्देश्यों के लिये कम कर रहे हैं।

6. योग्य और पात्र लोगों को संस्थान की सदस्यता : योग्य और पात्र लोगों को संस्थान की सदस्यता दिलाने के लिये नये 0 नं. फार्म को सही तरीके से भरवाकर और फार्म के निचले हिस्से में अनुशंसा (सिफारिश) करके फार्म को जयपुर स्थित राष्ट्रीय अध्यक्ष के कार्यालय के पते पर स्पीड पोस्ट डाक से भिजवा दें| आपसे उम्मीद की जाती है कि आप कम से कम 10 परिचित लोगों को इस संस्थान की सदस्यता दिलवाकर, अपने क्षेत्र में इस संस्थान का विस्तार जरूर करेंगे और आगे भी लगातार नये लोगों को सदस्यता दिलाने की अनुशंसा (सिफारिश) करते रहेंगे। इससे संस्थान की ताकत (जनबल) में वृद्धि होगी।

7. सबसे पहले स्वयं को बदलें : हम सभी जानते हैं कि आज सरकारी, गैर-सरकारी और हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार, अत्याचार, नाइंसाफी और मनमानी इस कदर बढ़ चुके हैं कि इनसे निपटने के लिये आम लोगों को सुनियोजित और सकारात्मक रणनीति अपनाने की जरूरत है| इसलिए सबसे पहले हमें स्वयं को बदलना होगा, क्योंकि जब तक हम खुद को नहीं बदल सकते, तब तक हम दूसरों से बदलने की उम्मीद नहीं कर सकते। अत: हम खोखली और दिखावटी आदर्श की बातें कहने से बचें और हम वही बातें कहें, जिसे/ हम अपने खुद के आचरण से प्रमाणित (सही सिद्ध) कर सकें। इसके बाद ही हम सफलतापूर्वक कोई कदम उठा पायेंगे।

8. हिन्दी समाचार-पत्र प्रेसपालिका :
(1) बास की सदस्यता मिलने के बाद एक वर्ष तक आपको हर माह की 1 एवं 16 तारीख को जयपुर से हिन्दी समाचार-पत्र "प्रेसपालिका" को साधारण डाक से आपके द्वारा 0 नं. फार्म में लिखे गये पत्राचार के पते पर भेजा जाता रहेगा| आप इस पते को लिखित आग्रह करके बदलवा भी सकते हैं| प्रेसपालिका में हर सदस्य और परिवार के हर सदस्य के लिये महत्वपूर्ण उपयोगी जानकारी होती है, जिसे आपको नियमित रूप से पढ़ते रहना है और अपने ज्ञान तथा जानकारी को बढ़ाते रहना है|
(2) आप इस बारे में अपने डाकिया को बतला दें की वह समय पर और नियमित रूप से आपको "प्रेसपालिका" को पहुंचता रहे| "प्रेसपालिका" में हर व्यक्ति के लिये दैनिक जीवन में उपयोगी महत्वपूर्ण जानकारी प्रकाशित होती है, इस कारण इसे कुछ लोग बीच में चुरा लेते हैं| यदि आपको किसी कारण से "प्रेसपालिका" नहीं मिले तो कृपया आप सीधे "प्रेसपालिका" सम्पादक और संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. पुरुषोत्तम मीणा से फोन : 0141-2222225 या मोबाईल नम्बर: 98285-02666 पर सायं 07 बजे से 08 बजे दौरान बात करें|
(3) एक वर्ष पूरा होने से कम से कम एक महिने पहले आपको निर्धारित शुल्क अदा करके "प्रेसपालिका" का नवीनीकरण करवाना अनिवार्य है| अन्यथा आपको प्रेसपालिका नहीं मिलने पर संस्थान की नियमित गतिविधियों, नये सदस्यों, पदाधिकारियों आदि के बारे में किसी भी प्रकार की जानकारी नहीं मिलेगी और आपको नये लोगों को संस्थान की सदस्यता दिलाने का अधिकार भी निलम्बित हो जायेगा|
9. अनुदान : आपको हर वर्ष इस बात को याद रखना है कि आपने आजीवन प्राथमिक सदस्यता का फार्म भरते समय अन्य बातों के आलावा निम्न घोषणा भी की है:-
"मैं इस संस्थान के संचालन एवं प्रबन्धन हेतु प्रतिवर्ष अपनी आय का न्यूनतम (कम से कम) 00.10 प्रतिशत हिस्सा (अर्थात 100 रूपये में से 10 पैसे) या न्यूनतम 100 रूपये (जो भी अधिक हो के बराबर) या अधिक धनराशि स्वेच्छा से इस संस्थान को आजीवन अनुदान करते रहने को सहमत हूँ|"
अत: आपको उक्त घोषणा का पालन करना चाहिये, जिससे संस्थान के संचालन के लिये संस्थान के नेतृत्व को किसी गैर-सदस्य के समक्ष हाथ नहीं फैलाना पड़े!

10. अनुशासन : कोई भी कार्य तब ही पूर्ण होता है, जबकि हम स्वयं को अनुशासित और समर्पित होकर कार्य को अंजाम दें! इसलिए सभी सदस्यों को चाहिये कि अपने आप को बास का अनुशासित सिपाही बनाने का काम करें और बास के नेतृत्व के मार्गदर्शन तथा निर्देशों का पालन करने के किसी प्रकार की लापरवाही नहीं करें!
नोट : बास की सदस्यता का फॉर्म डाऊनलोड करें :-
पदाधिकारियों के कर्त्तव्य :

1. अपने आचरण में गुणात्मक तथा सकारात्मक परिवर्तन : अपने परिवार, मित्रों, रिश्तदारों, साथियों, समाज और सरकार के समक्ष स्वयं को एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करने के लिये, अपने आचरण में गुणात्मक तथा सकारात्मक परिवर्तन और सुधार लाने का दिल से प्रयास करें और यदि आप ईश्‍वर की सत्ता में विश्‍वास करते हैं तो कोई भी कार्य शुरू करने से पूर्व याद रखें कि ईश्‍वर के इंसाफ के नियम अपना काम बिना विभेद के करते रहते हैं। 

2. दिल से प्रयत्न करें : आप दूसरों से जैसे सदाचरण की उम्मीद करते हैं, उससे भी श्रेष्ठ सदाचरण स्वयं करने का दिल से प्रयत्न करें।

3. झूठा दिखावा नहीं करें : आप दूसरे लोगों से केवल उन्हीं आदर्शों या अच्छाईयों के निर्वाह की बात करें/कहें, जिन्हें आप स्वयं, अपने आचरण से प्रमाणित करते रहे हों। अन्यथा झूठा दिखावा व्यक्तिगत रूप से आपको और संस्थान को भी कमजोर ही करेगा।

4. निष्ठा एवं समर्पण : संस्थान के संविधान में वर्णित सभी नियमों, सिद्धान्तों, उद्देश्यों, कर्त्तव्यों, उच्च नेतृत्व के निर्णयों या प्रस्तावों, सदस्यता फार्म, नियुक्ति हेतु प्रस्तुत फार्म में की गयी घोषणा तथा नियुक्ति-पत्र/फोटो कार्ड में वर्णित दिशानिर्देशों का पूर्ण निष्ठा एवं समर्पण के साथ पालन करें। 

5. संस्थान की ताकत में बढोतरी : संस्थान की प्रारम्भ से नीति रही है कि संस्थान के प्रत्येक सदस्य के सम्मान और खुद्दारी की हमेशा रक्षा (हिफाजत) की जायेगी। जिसके लिये संस्थान को निम्न तीन शक्तियों को बढाते रहने की प्रत्येक सदस्य की जिम्मेदारी है। सभी पदाधिकारियों से विशेष रूप से आशा की जाती है कि वे इन चारों ताकतों को बढाने के लिये हमेशा ईमादारी से कार्य करते रहेंगे :-
(1) जनबल : लोकतन्त्र में उसी की आवाज सुनी जाती है, जिसके साथ लोगों का समर्थन और सक्रिय सहयोग हो। इसलिये हमेशा अपने क्षेत्र में तथा देशभर में जहॉं कहीं भी आपके परिचित लोग रहते हैं, वहॉं-वहॉं के सभी पात्र और योग्य लोगों को इस संस्थान की सदस्यता दिलवाते हुए संस्थान के संख्याबल (जनबल) में वृद्धि करते रहें।
(2) धनबल : कोई भी संगठन या निजाम अर्थ (धन) के अभाव में अधिक समय तक जिन्दा नहीं रह सकता है और  कोई भी संगठन या निजाम पर्याप्त तथा नियमित आर्थिक संसाधानों के अभाव में अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकता। इस कड़वी सच्चाई को जानते और समझते हुए भी इस संस्थान की स्थापना के समय से ही हमारी इस बारे में यह नीति रही है कि हम विदेशी ताकतों, सरकार या भ्रष्ट लोगों से कभी भी अनुदान नहीं लेंगे और संस्थान की दैनिक जरूरतों तथा आवश्यक संसाधनों के लिये सभी सदस्य मिलकर अपनी आय का बहुत छोटा सा अंश (अपनी आय का मात्र 00.10 फीसदी हिस्सा अर्थात् प्रत्येक 100 रुपये में से 10 पैसे) संस्थान को नियमित रूप से अनुदान के रूप में अदा करते रहेंगे। सभी को जानकर सुखद आश्‍चर्य होना चाहिये कि संस्थान की 1993 में स्थापना से आज तक हमने किसी गैर सदस्य से एक पैसा भी अनुदान नहीं लिया है| लेकिन सभी सदस्यों से नियमित रूप से वार्षिक अनुदान भी प्राप्त नहीं हो रहा है। जिसके कारण संस्थान की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है और हम बहुत सारे जरूरी कार्य केवल धन की कमी के कारण ही नहीं कर पाते हैं। 
अत: प्रत्येक पदाधिकारी का यह अनिवार्य कर्त्तव्य है कि वह न मात्र स्वयं नियमित रूप से अनुदान करता रहे, बल्कि अपनी शाखा के सभी सदस्यों को भी अनुदान अदा करने के लिये प्रेरित और प्रोत्साहित करते रहें| जिससे संस्थान के धनबल में हमेशा इजाफा (बढोतरी) होता रहे।
(3) बौद्धिकबल : जनबल और धनबल की सीमाएँ निर्धारित हैं, लेकिन बौद्धिकबल की कोई सीमा नहीं होती हैं| यद्यपि सतत ज्ञान प्राप्ति के बिना बौद्धिकबल अर्जित करना असम्भव है| अत: हर एक सदस्य को अपने ज्ञान की धार को लगातार तेज करते रहना चाहिये| जिसके लिये सभी सदस्य दैनिक जीवन में उपयोगी पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों के साथ-साथ संस्थान के समर्थन में प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र ‘प्रेसपालिका’ का नियमित रूप से अध्ययन करें और अपने बौद्धिकबल का विस्तार करते रहें| ‘प्रेसपालिका का पाठक शुल्क’ समाप्त होने से कम से कम एक माह पूर्व ही ‘प्रेसपालिका का नवीनीकरण शुल्क’ निम्मानुसार जमा करते रहें और अपने साथियों को भी जमा करने को प्रेरित तथा प्रोत्साहित करें :-
  • (1) 200 रुपये 1 वर्ष|
  • (2) 350 रुपये दो वर्ष।
  • (3) 500 रुपये तीन वर्ष। 
  • (4) 650 रुपये चार वर्ष।
  • (5) 800 रुपये पॉंच वर्ष|
  • (6) 1500 रुपये दस वर्ष|
  • (7) 2500 रुपये बीस वर्ष|
  • (8) 5100 रुपये आजीवन|

6. सुनिश्‍चित करें :
अपनी शाखा के सभी पदाधिकारियों और सदस्यों के सहयोग से धर्म, जाति, लिंग, सम्प्रदाय और क्षेत्रीयता की भावना से ऊपर उठकर, हर प्रकार की नाइंसाफी एवं गैर-बराबरी के विरुद्ध इस संस्थान के पदाधिकारी के रूप में निर्भीकता और निष्पक्षता से लगातार कार्य करते रहें| साथ ही संस्थान की यथा समय प्रचलित रीति के अनुसार निम्न कार्य करना सुनिश्‍चित करें :-
  • (1) सभी सदस्यों को जागरूक एवं निर्भीक बनाना।
  • (2) सभी सदस्यों को जरूरत के अनुसार संरक्षण देना और दिलवाना।
  • (3) सभी जरूरतमन्दों को मार्गदर्शन, सहयोग एवं मदद देना और दिलाना। और
  • (4) जनहित के मामलों में जरूरी कार्यवाही करना और करवाना।
पदाधिकारियों के अधिकार :

  • 1. अपने पद के अनुसार फोटो कार्ड प्राप्त करने और उसे हमेशा अपने साथ रखने का अधिकार।
  • 2. अपने नाम और पद के लैटर हैड पर संस्थान की ओर से, संस्थान के उद्देश्यों और नियमों के अनुसार नाइंसाफी के विरुद्ध तथा न्यायहित में पत्राचार करने एवं प्रशासन, सरकार तथा जन प्रतिनिधियों को सुझाव देने का अधिकार।
  • 3. अपने नाम और पद के अनुसार अपने निवास, कार्यस्थल और वाहन पर नैमप्लेट बनवाकर लगाने का अधिकार।
  • 4. भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण, कालाबाजारी, मिलावट आदि गैर-कानूनी कृत्यों की रोकथाम, सुधार एवं उन्मूलन के लिये कार्य करने/करवाने और विभिन्न मंचों पर आवाज उठाने के अधिकाधिक अवसरों की प्राप्ति का अधिकार।
  • 5. अपने नाम और पद के अनुसार लैटर हैड बनवाकर उसका राष्ट्रहित, जनहित और व्यथित तथा जरूरतमन्दों के हित में उसका उपयोग करने का अधिकार।
  • 6. निजी, संस्थागत और समाजिक समस्याओं के समाधान व निराकरण में बास के अनुभवी उच्च नेतृत्व के सकारात्मक एवं समाधानकारी मार्गदर्शन प्राप्त करने का अधिकार।
  • 7. संस्थान से सम्बद्ध समाचार-पत्र, पत्रिकाओं, स्मारिकाओं आदि में रचनात्मक लेख, विचार, अनुभव, उपलब्धि आदि के प्रकाशन की सुविधा का अधिकार।
  • 8. संस्थान के उच्च नेतृत्व की ओर से संस्थान की ओर से कार्य करने के लिये प्रदान किये जाने वाने प्रशिक्षण शिविर में भाग लेने का अधिकार।
  • 9. उत्कृष्ट कार्य करने पर संस्थान की ओर से प्रमाण-पत्र, पुरस्कार, सम्मान, प्रशंसा-पत्र आदि की प्राप्ति के अवसरों की प्राप्ति का अधिकार। 
  • 10. प्रदान किये गये पद के अनुसार, स्थानीय स्तर पर अपनी शाखा का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार।
  • 11. संस्थान के प्रतिनिधि के रूप में अपनी शाखा के पुलिस व सामान्य प्रशासनिक अधिकारियों, जन प्रतिनिधियों, मन्त्रियों आदि से मिलने, बास का प्रतिनिधित्व करने और संस्थान का पक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार।

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