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JOIN-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान-BAAS

31 July 2011

संस्थान से जुड़ने के इच्छुक देश के सम्मानित नागरिकों की जानकारी हेतु जरूरी सात बातें!

इस संस्थान से जुड़ने के इच्छुक सम्मानित नागरिकों की जानकारी हेतु जरूरी सूचना :-

बास की सदस्यता प्राप्त करने के विचार को अंतिम रूप देने से पहले निम्न बातें जान लेनी जरूरी है :-
1. इस संस्थान की सदस्यता ग्रहण करने से यदि-

(1) आपका निजी जीवन या,(2) आपका परिवार या,

(3) आपका व्यवसाय जरा भी कुप्रभावित होता हो तो कृपया इस संस्थान की सदस्यता ग्रहण नहीं करे!
2. यह संस्थान धनी और निष्क्रिय लोगों को फोटो कार्ड बाँटने (बेचने) वाला संगठन नहीं है! अत: वास्तव में इंसाफ, मानवता, समाज और देश के लिए काम करने के इच्छुक गरीब, धनी, शहरी, ग्रामीण और आम लोग ही इस संस्थान से जुड़ें!
4. यदि आप अधिक शिक्षित, चालाक और तेज तर्रार नहीं हैं तो चलेगा, लेकिन यदि आप अधिक शिक्षित, चालाक और तेज तर्रार होकर भी बुझदिल, डरपोक और जीते जी मुर्दों सा जीवन जीने के आदी हो चुके हैं, तो नहीं चलेगा! यही नहीं यदि आप इस संस्थान के नाम पर इंसाफ की लड़ाई के बहाने भोले-भाले लोगों या जोशीले युवाओं को बरगलाने, उकसाने, गुमराह करने, भड़काने, तोड़-फोड़ करने/कराने या देश की कानून-व्यवस्था को चौपट करने में विश्वास करते हैं तो भी नहीं चलेगा!
5. कुछ लोग ऐसा सोचते हैं, मानो इस संस्थान की सदस्यता प्राप्त करते ही वे हर प्रकार के भ्रष्टाचार, अत्याचार और नाइंसाफी को जड़ से उखाड़ फेंकेंगे! ऐसा सोचने वाले लोग सदस्यता ग्रहण करने के कुछ समय बाद ही निराश और हताश हो जाते हैं! क्योंकि ऐसा सोच रखने वाले लोग भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के गठबंधन की ताकत को नहीं समझते! हालाँकि ये बात सही है कि भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को समाप्त करना अत्यंत जरूरी है, किन्तु इससे भी अधिक जरूरी है, भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों से अपने आपको बचाना! जिन्दा रहेंगे तो भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ लड़ाई जारी रहेगी और जनता की जागरूकता के चलते; व्यवस्था में बदलाव के जरियेभ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को भी समाप्त किया जा सकता है!
6. इस संस्थान के सदस्यों को सरकारी कर्मचारियों तथा अधिकारियों के विरुद्ध जबरन जाँच करने या धरपकड़ करने का अलग से कोई कानूनी अधिकार नहीं है, लेकिन बास के सभी प्रशिक्षित सक्रिय कार्यकर्ताओं तथा पदाधिकारियों को बास के संविधान तथा देश के कानून के अनुसार हर प्रकार के भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण, उत्पीडन, मनमानी, कालाबाजारी, मिलावट, भेदभाव, गैर-बराबरी आदि सभी प्रकार की गैर-कानूनी गतिविधियों पर निगरानी रखने और देश के कानूनों तथा लोक कल्याणकारी नीतियों को लागू करवाने के लिए काम करने का कानूनी अधिकार अवश्य है| साथ ही दोषियों के विरुद्ध दण्डात्मक कार्यवाही करवाने के लिए बास के सभी प्रशिक्षित सक्रिय कार्यकर्ताओं तथा पदाधिकारियों को वैधानिक कार्यवाही करके और उन्हें सजा दिलाने के लिए कार्य करने का संवैधानिक अधिकार भी है|
संस्थान से जुड़ने के इच्छुक देश के सम्मानित नागरिकों की जानकारी हेतु जरूरी सात बातें :-
1-इस संस्थान में धन (डोनेशन) या प्रभाव या दिखावे के बल पर निष्क्रिय/अपात्र सदस्यों की पदाधिकारी के रूप में नियुक्ति नहीं की जाती हैं!


2-यह संस्थान किसी भी प्रकार की अतिवादी विचारधारा में विश्वास नहीं करता है! अत: बास नेतृत्व द्वारा देश के लोगों या सदस्यों को भड़काऊ भाषा या विवादास्पद मुद्दों के जरिये गुमराह करने या सरकार या प्रशासन या वर्ग विशेष के प्रति उकसाने या भड़काने का कम नहीं किया जाता है!


3-इस संस्थान में काम करने वाले समर्पित, अनुशासित, उत्तरदायी, वफादार, परिश्रमी तथा सक्रिय सदस्यों को बिना किसी सिफारिश और बिना किसी जोड़-तोड़ के स्वत: ही (अपने आप ही) बास द्वारा निर्धारित पारदर्शी प्रक्रिया के मार्फ़त निम्न से उच्च पदों पर नियुक्ति और पदोन्नति मिलती जाती हैं!

4-संस्थान के संविधान में बिर्धारित उद्देश्यों, सिद्धान्तों, नियमों आदि बातों के साथ-साथ यह संस्थान अपने सम्मानित सदस्यों से उनके जीवन में निम्न तीन तरह के बदलावों की अपेक्षा (आशा) करता है :-
(1) "अपने आप को बदलो, दुनिया अपने आप बदल जायेगी!" अर्थात हम दूसरों में जो बदलाव देखना चाहते हैं, उन सबकी "शुरुआत अपने आप से करें!"
(2) सभी सदस्यों को नाइंसाफी एवं मनमानी के खिलाफ सफल होने के लिये दैनिक जीवन में उपयोगी "समग्र ज्ञान की धार को लगातार पैनी/तेज करते रहें!"
(3) अभी भी अच्छे, सच्चे और समर्पित सरकारी कर्मचारी और अधिकारी हैं! हमें उनको प्रोत्साहित करना चाहिए, जबकि मनमानी करने वाले प्रत्येक सरकारी कर्मचारी और अधिकारी को गरिमापूर्ण तरीके से ये बताने से भी नहीं चूकना चाहिए कि "हर एक लोक सेवक (पब्लिक सर्वेंट अर्थात जनता का नौकर) होता है! उसे जनता की सेवा करने के लिये ही जनता से एकत्रित कर (टेक्स) से वेतन दिया जाता है! अत: हर लोक सेवक का पहला कर्त्तव्य जनता की सेवा करना है!"
5-इस संस्थान के संविधान में वर्णित अन्य बातों के अलावा, यह संस्थान अपने सदस्यों से निम्न अनिवार्य कर्त्तव्यों का निर्वाह करने की अपेक्षा करता है :-
(1) जहाँ तक सम्भव हो किसी भी कमजोर व्यक्ति, पशु, पक्षी या किसी भी जीव-जंतु पर "अत्याचार नहीं करें!"
(2) स्त्री कायनात (Universe) की सबसे जरूरी नियामत (Wealth) है! अत: "कन्या भ्रूण हत्या न करें और न लोगों को करने दें!"
(3) भारत का संविधान प्रत्येक व्यक्ति के सम्मानपूर्ण जीवन की गारण्टी देता है, जिसकी रक्षा हम सबका भी दायित्व है! इसके लिये हम निश्चय करें कि "हम न तो किसी का अपमान करेंगे और न ही किसी का अपमान सहेंगे!"
(4) आपदा, दुर्घटना या महामारी आदि के समय बास के सभी सदस्य स्थानीय "पुलिस एवं सामान्य प्रशासन के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर सक्रिय और आत्मीय सहयोग करें!"
(5) समाज में शांति और कानून-व्यवस्था बनाये रखना केवल पुलिस और प्रशासन का ही दायित्व नहीं है, ये प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है! "सभी सदस्य इसमें सक्रिय भूमिका अदा करें!"
(6) बास किसी भी धर्म या राजनैतिक दल से सम्बद्ध नहीं है! अत: "अपनी धार्मिक या राजनैतिक विचारधारा को बास के कार्यों से अलग रखें!" हाँ निजी तौर पर अपने धार्मिक और राजनैतिक विचारों के अनुसार कार्य करने को बास का हर एक सदस्य पूरी तरह से स्वतन्त्र होता है!
(7) बास की सदस्यता ग्रहण करने के बाद प्रथम एक वर्ष के अन्दर-अन्दर, अपने परिचित, मित्र और सम्बन्धियों में से "कम से कम 7 योग्य तथा पात्र लोगों को बास की आजीवन प्राथमिक सदस्यता अवश्य दिलावें!" और आगे भी देशभर में जहाँ कहीं भी सम्भव हो बास की "सदस्य संख्या को बढाने के लिये लगातार कार्य करते रहें!"
(8) जागरूक नागरिक बनाने के लिए बास के समर्थन में जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र "प्रेसपालिका" का "नियमित रूप से और गंभीरता से लगातार अध्ययन करते रहें!"
(9) आप यदि अपने परिश्रम से 100 रुपये कमायें तो उसमें से कम से कम 10 पैसे बास के संचालन एवं प्रबंधन हेतु "स्वेच्छा से प्रतिवर्ष बास को अनुदान (डोनेट) करें!"
(10) बास की सभी बैठकों, मीटिंग, प्रशिक्षण शिवर आदि के आयोजन में सहयोगी बनकर, "सक्रिय रूप से शामिल रहें और इनसे लाभान्वित हों!"
 6-यह संस्थान निम्न प्रकार से कार्य करता है :-
(1) उक्त बिंदु 5 के उप बिंदु (1) से (10) तक में वर्णित कर्त्तव्यों का निर्वाह करने वाले बास के सभी समर्पित सदस्यों को बास स्थानीय शाखा द्वारा हर प्रकार की (नितान्त व्यक्तिगत एवं पारिवारिक मामलों को छोड़कर) नाइंसाफी के खिलाफ हर प्रकार का "संरक्षण देना और दिलाना!"
(2) स्थानीय स्तर पर यदि बास के पास पर्याप्त संसाधन और ताकत हो तो बास की मदद मांगने वाले "जरूरतमंदों का मार्गदर्शन करते हुए जरूरी मदद करना!"
(3) स्थानीय स्तर पर यदि बास के पास पर्याप्त संसाधन और ताकत हो तो जनहित के "स्थानीय मामलों" में स्थानीय शाखा पदाधिकारियों की सामूहिक राय से उचित एवं जरूरी कार्यवाही करना!
(4) बास की स्थानीय शाखा के नेतृत्व में बास के सदस्यों और आम लोगों को नाइंसाफी का मुकाबला करने के लिये "लगातार प्रेरित करते रहना!"

(5) बास की स्थानीय शाखा के नेतृत्व में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाओं की लगातार सतर्क निगरानी करते हुए, उनमें जरूरी सुधार तथा उन्नति करने के लिये आम लोगों, जन प्रतिनिधियों, प्रशासन और सरकार को अवगत करवाते रहना!

7-भारत के संविधान में आस्था और विश्वास : भारत जन्संसख्या और क्षेत्रफल दोनों द्रष्टियों से बहुत बड़ा देश है, भारत के लोगों में अनेकानेक धर्म, सम्प्रदाय, मत और अनेक प्रकार के विश्वास प्रचलित हैं| इसके अलावा भारत में अनेक भाषाएँ और बहु आयामी संस्कृति के साथ-साथ ऐसी-ऐसी रीति और परम्पराएँ प्रचलित हैं, जिनमें आपस में विषमता, विरोधभास और व्यावहारिक प्रतीकों में अनेक प्रकार की भिन्नताएँ हैं| यहाँ अनेक वर्ग, वर्ण, जाति और गोत्र के लोग साथ-साथ निवास करते हैं| यहाँ के लोगों की आर्थिक और सामाजिक स्तिथि में धरती-आसमान का अंतर है| इस सबके आलावा भी भारत के लोगों में भिन्नता और अनेकता के अनेक रूप और प्रकार हैं और इन सबके कारण ही हमारे देश का संविधान संसार का सबसे बड़ा संविधान है| जिसमें सभी लोगों, समूहों, धर्मों, क्षेत्रों, भाषाओँ, वर्गों, जातियों आदि का ध्यान रखने का प्रयास किया गया है, फिर भी संविधान के सभी प्रावधानों से सभी देशवासी पूरी तरह से सन्तुष्ट नहीं हैं| जिसके कारण देश में वैचारिक मतभेदों के चलते यदाकदा टकराव की स्थितियाँ उत्पन्न होती रहती हैं| ऐसे अप्रिय और असहज हालातों का लाभ उठाने में इस देश की कुछ राजनैतिक पार्टी (दल), कुछ धार्मिक लोग और कुछ संगठन हमेशा तैयार रहते हैं| जिसके कारण देश की समरसता, शांति, धर्म निरपेक्षता, एकता और कानून-व्यवस्था को भारी नुकसान होता रहा है| जिसके कारण देश के विकास में रुकावट आती है और संसार के सामने देश के सम्मान को धक्का लगता है| ऐसे हालातों में बास के सभी सदस्यों से आशा की जाती है कि-
(1) भारत के संविधान के कुछ प्रावधानों से या कुछ नीतियों से कुछ लोगों को असंतोष होने के उपरांत भी संविधान की गरिमा की रक्षा करना बास के सभी सदस्यों का संवैधानिक कर्त्तव्य है|
(2) सार्वजनिक और राष्ट्रीय हितों तथा निजी या स्थानीय हितों के बीच सम्मानजनक समन्वय बिठाये बिना इंसाफ, समानता, उदारता, सद्भाव, शांति, प्रगति, विकास, समरसता, धर्म निरपेक्षता, सामाजिक न्याय, समाजवाद, आपसी सम्मान आदि राष्ट्रीय तथा संवैधानिक जरूरतों की स्थापना कैसे सम्भव है? अत: सभी सदस्यों को इन बातों के प्रति संजीदा रहने की जरूरत है|
(3) हर सम्भव प्रयास के बाद (उपरान्त) भी यदि देश के लोगों के बीच कुछ मुद्दों पर आम राय नहीं बन पाती है तो ऐसे विवादास्पद मामलों या विषयों से बास के सदस्यों को यथासंभव तटस्थ या दूर रहना चाहिए| क्योंकि ऐसे मामलों को हवा देने (बढ़ावा देने) से देश और समाज के हालत सुधरने के बजाय बिगड़ते ही हैं|

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